कल शाम को ऑफिस से घर जाने के बाद थकान मिटाने के लिए सोचा क्यों न एक कप चाय पी ली जाये........पर पता नहीं था 1 कप चाय के लिए अन्ना के 1 लोकपाल बिल जितनी मेहनत करनी पड़ेगी और आखिर मिलेगा कुछ नहीं ......दरअसल हुआ यूँ की जैसे ही हमने रूम में चाय पीने की मंसा बताई तो वैसे तैयार तो सभी हो गये पर सवाल खड़ा हुआ की आखिर दूध कौन लाये ऐसा लगा जैसे कोई कह रहा हो सरकार को जन लोकपाल बिल पारित करने के लिए ज्ञापन देने कौन जाये ......जैसे तेसे दूध आया और आते ही बहस शुरू हो गई की आखिर चाय बनाये कौन और वो भी बहुत जोर शोर से और यदि बनाये तो क्यों बनाये ?ऐसा लगा जैसे सभी राजनीतिक पार्टिया साथ बैठी हो और कह रही हो की भाई आखिर हम क्यों लोकपाल बिल को सपोर्ट करे .....और भाई चाय बनाने की चर्चा में इतना वक्त बीत गया की लगा अब तो अन्ना की तरह चाय के लिए अनसन ही करना पड़ेगा क्योकि न तो कोई चाय बनाने के लिए तैय
ार था और ना उसके बनाने में सहायता करने के लिए ......और अब चाय पर लोकपाल की तरह जंग शुरू हो गई और उसकी खबर मुहल्ले वालो तक पहुच गई और लगभग हर न्यूज़ चेनल की ब्रकिंग न्यूज़ बन गई .......अब कुछ सुधि लोग सरकार की तरफ से हमारे पास आये की जो पहले से बनी बनाई चाय है उसे ले आते है उसे ही थोडा अदरक डाल के पी लेना ....भला सरकारी लोकपाल कहा का बुरा है ....तभी आवाज़ आई की नहीं हम बाहर की चाय नहीं पियेंगे हमे तो अभी नई चाय ही चाहिए और तभी सरकार ने सोचा ये तो अड़ियल स्वाभाव के लोग है छोडो इन्हें .......सब ख़त्म हो गया पर अभी भी चाय कैसे बने यह मुद्दा बना हुआ था .........तभी चाय पीने वालों ने सोचा चलो हम सब मिलकर ही कुछ करते है और जैसे ही चाय बनाने की कोशिश की गई तभी दूध फट गया और दूध का कण कण अलग हो गया .....अन्ना की टीम की तरह .....पर अभी भी चाय की प्यास बरकरार है ...और हम अभी भी फटे दूध से चाय बनाने के लिए प्रयासरत है ...........अब फटे दूध से चाय कैसे बनेगी यह तो पता नहीं पर बस डर इस बात का है की और दूसरों [सरकार }की तरह हम भी बाहर की चाय ना पीने लग जाये ....और अभी तक की हमारी मेहनत और विश्वास हमारा ही गला काटने ना लगे जाये .....और तभी मेरी थकान ने मुझे सुला दिया पर चाय नसीब नहीं हुई !!!!!!!!!!!

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