सफलता और असफलता के चक्रव्यू में फसी जिन्दगी
किसी ने सही कहा है की जिन्दगी ऐसी अबूझ पहली है जिसे जिसने जितना समझा वो उतना ही जिन्दगी के सम्बन्ध में नासमझ या कहे अन्जान होता गया| ,,,जिन्दगी तो एक ऐसा खेल है ,जिसे खेलना तो सबको पड़ता है|पर कुछ लोग उसमे हर दम जीतते रहते हैं और खुशिया मानते हैं और कुछ के नसीब में बस होती है मायूशी और हर दम दुखो की बरसात ...खेर जिन्दगी के दो पुत्र और भी है जिन्हें हम सफलता और असफलता के नाम से जानते हैं | यह दोनों हर दम साथ- साथ ही रहते है और चुकीं हैं तो यह दोनों सगे भाई ही पर दोनों का काम कुछ अलग जरुर है |हा कुछ- कुछ समानता भी है इनमे पहली बात तो यह किसी के भी सगे नहीं होते हैं | कभी किसी के गर मातम मनवा देते हैं , तो किसी के घर खुशियों का माहोल बना देते है| इनकी कहानी भी जिन्दगी की तरह ही अबूझ है |जिसे जितना समझना हो समझ लो आखिर में कुछ भी समझ नहीं आयेगा |
चाहे दुनिया में हम कोई भी काम क्यों न करें हार -जीत तो उसके साथ हमेशा रहती ही है| कभी किसी को जीत नसीब हो जाती है ,तो कभी किसी को हार| पर खुश फिर भी दोनों नहीं रह पाते क्योंकि जीतने वाले को जीतने का घमंड हो जाता है| और वो असल ख़ुशी से वंचित रह जाता है और हारने वाले की हालत ऐसे हो जाती है जैसे उसका सब कुछ ख़त्म गया हो या उसकी दुनिया लुट गई हो और वो दीन- हीन हो जाता है ...दोनों की ही बड़ी अजब और गजब कहानी होती है, जिसे जीत या कहें सफलता इसका स्वाद चखने के बाद इन्सान उड़ने लगता है और उसे लगता की वो दुनिया का सबसे बड़ा और महान आदमी है |..और उसे दुनिया वाले लोग बहुत छोटे या कहें कीड़े माकुड़ो की तरह नजर आने लगते हैं और वह इस तरह किसी और ही भ्रम की दुनिया की सेर करने में मस्त जाता है| जबकि असफल व्यक्ति इससे ठीक विपरीत होता है, वह मायुश हो जाता है और उसकी दुनिया सिमट जाया करती है|वह अंपने को बहुत छोटा समझने लगता है और मर मर कर जीने लगता है उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता और वह अपने को बहुत ही गिरा हुआ समझने लगता है और जिसके कारण वह हमेशा दुखी ही रहता है ...सच में यह दोनों ही नशे की तरह ही होते हैं क्युकी दोनों ही हमारा स्वाभाव भुला देते हैं और जिसमें एक सुख के भ्रम में और दूसरा दुःख के भ्रम में जीने लगता है पर असल में दोनो ही मदहोश हैं सच का दोनों को भान नहीं है | सारी की सारी दुनिया भी बस इसी खेल में ,मशगूल है|और शायद वह इस सफलता और असफलता के चक्रव्यू से बाहर ही नहीं आना चाहती और शायद इसी खेल में उसे आनंद की अनुभूति भी होती है अत:वो इससे पर पाना ही नहीं चाहता और असल ख़ुशी को पाने की उसकी इच्छा ही ख़त्म हो गई है क्योंकि उसने इसी भ्रम को सुख का अहसास समझ लिया है और जिसके पडले में जीत की गोटी आ जाती है वह अपने को इतना बड़ा समझने लगता है की उसे बाजार सकरा और खुद को चोडा समझने लग जाता है | जबकि हारने वाला बेबस और अकेला खड़ा रहता है ..जय प्रकाश चोकसे का इस सम्बन्ध में सच ही कहते हैं की "जब व्यक्ति सफल हो जाता है तो उसके न जाने कितने बाप उसके सामने खड़े होते है और असफल व्यक्ति नाजायज ओलाद की तरह बस अकेला ही होता है" पर दुनिया की यही रीत है की जब व्यक्ति सफल है तब तक तो उसकी पूजा और असफल होने पर कोई और दूजा और सच बात तो यह है की असफल होते ही सारे के सारे रिश्ते नाते सब कुछ कहा हवा हो जाते हैं पता ही नहीं चलता ...पर शायद यह भी बात उतना ही सही है की जिस तरह असफल व्यक्ति को दुनिया नहीं गिनती या नहीं पूछती उसी तरह सफल व्यक्ति भी दुनिया को नहीं पूछता या अपने सामने कुछ नहीं गिनता यही दोनों का स्वाभाव बन जाता है |
हर इन्सान के सफलता के पैमाने अलग =अलग हो सकते है यदि कोई व्यक्ति डाक्टर या इंजिनियर या किसी देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता है और वह बन जाता है तो वह सफल है और यदि नहीं तो असफल है पर आज सफलता असफलता का कुछ अलग ही पैमाना है| आज उसे ही सफल माना जाता है जिसके पास पैसा हैं और जिसके पास पैसा नहीं है तो वह असफल है इसलिए आज लोग सफलता के पीछे नहीं अपितु पैसे के पीछे भागते नजर आते हैं क्योंकि आज उनके लिए वही सबकुछ है इसलिए आज कोई कुछ होना नहीं चाहता होना चाहता है तो बस पैसे वाला अब तो सब उपाधि डिग्री अध्यन सब कुछ पैसे के लिए ही किया जाता है क्युकी वह ही सफलता है और गरीबी ही असफलता अत: हर गरीब आदमी आज असफल है और हर अमीर आदमी सफल भले वह चोर डाकू या लुटेरा अंगूठा छाप ही क्यों न हो क्यूंकि पैसे में ही सबकुछ बस्ता है| इसलिए शायद भर्तहरी ने वो सही ही सूक्ति लिखी थी की "सर्वे गुणाः कंचनाआश्रयन्ते "खेर न तो सफल और असफल होने वाले उसकी परिभाषा समझते है और न ही यह दुनिया वाले कुछ समझता है| सब के सब बस हुआ हुआ की तर्ज पर काम करने वालो में से हैं इसलिए शायद सभी दुखी और परेशान है | असल में सफलता और असफलता को समझना उतना ही कठिन है जितना आत्मा को या अध्यात्म को क्योंकि बात तो बस इतनी है की यह दोनों ही हमारे अंतर्मन के मनोभाव है खुद इन्सान के जिसमे एक तो दुःख के रूप में व्यक्त होता है और दूसरा सुख के रूप में सबकुछ हमारे द्रष्टिकोण और सोचने के नजरिये के अनुसार ही होता है जिसने इसकी यह गुत्थी सुलझा ली वह ही बस मस्त और खुश रह सकता है| और उसके लिए जरुरी है आत्मनियंत्रण क्युकी बिना आत्म नियंत्रण के असफल हो जाने पर कुछ लोग तो इतना टूट जाते हैं की उनकी जीवन लीला तक समाप्त कर लेते हैं | इसलिए बस यहाँ तो वही उपाय कारगर है न तो असफलता में टूटना है और न ही सफलता में फूलना है| हर दम सामंजस्य रखना है अपने आप पर फिर देखो यह जहन्नुम सी दिखने वाली दुनिया कब जन्नत बन जाएगी और शायद इसी को खुद को या खुदा को समझना कहते हैं तो बस अंत में यही कहूँगा की इस असफलता और सफलता बस स्वांग है इसलिए उस स्वांग को स्वांग समझकर अपनी अस्ति की मस्ती में मस्त हो जाइये और फिर देखिये हर पल हर क्षण बस खुशिओं की बरसात होगी |
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